$ 0 0 एक दर्ज़ी था बड़ा निराला करता था वह अजब सिलाई सारे उसकी कारीगिरी देख कर करते उसकी खूब बढ़ाई | उस की एक आदत थी न्यारी आश् चर्य में डाले सब को भाई ‘सुई’ को टोपी पर टांके पर रखता ‘कैंची’ पैर दबाई | हैरानी से लोगों ने पूछा ऐसा क्यों करते हो भाई दर्ज़ी ने तब सुन्दर शब्दों में लोगों को यह बात समझाई | ‘सुई से हम जोड़ना सीखें’ ‘कैंची की कट’ है दुःखदाई जोड़ने वाले को इज़ज़त करके उसको ऊपर जगह दिलाई काटने वाले से चौकस रेह्कर वश में रखता उसको भाई | ‘जिसने मिलाने का गुर सीखा’ छोटा होकर भी बढ़ जाई ‘काटने वाला’ ज़रूरी हो तब भी वैसी इज़ज़त कभी न पाई |